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Nishant Kumar

Abstract

3.3  

Nishant Kumar

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'सिद्धार्थ' की तलाश

'सिद्धार्थ' की तलाश

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दिल्ली की इन गलियों के, हर दिल में एक ही आस है;

आज़ादी की तमन्ना है, सिद्धार्थ की तलाश है।


पूर्वजों की उस भूमि पर, इन्हें फिर से तुम्हें ले जाना है;

इस मकसद की खातिर गौतम, तुम्हें दोबारा आना है।


भारत को मिलकर सबने, दूसरा घर बनाया है;

वर्षों बीत गए, पर तिब्बत को नहीं भुलाया है।


चीन का शोषण देख दुनिया ने, चुनी भूमिका मूकदर्शक की;

बुद्ध तेरे भक्तों को, इंतज़ार पथ प्रदर्शक की।


इंतज़ार करते-करते, कईयों ने आंखें बंद किए।

शुद्धोदन पुत्र! जलाने होंगे, तुम्हें उम्मीदों के दिये।


ऐसा ना हो कि तेरे आने का, हर आस छूट जाए:

भक्त तुम्हारे जीवन भर के लिए तुमसे ना रुठ जाए।


क्या ताकतवर देशों की, हर मनमानी माफ है ?

मायापुत्र! बताओ आकर, घर लूटना पाप है।


प्रवासियों को विश्वास है, अंधरे से ताकतवर प्रकाश है;

आज़ादी की तमन्ना है, सिद्धार्थ की तलाश है। 



  



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