'सिद्धार्थ' की तलाश
'सिद्धार्थ' की तलाश
दिल्ली की इन गलियों के, हर दिल में एक ही आस है;
आज़ादी की तमन्ना है, सिद्धार्थ की तलाश है।
पूर्वजों की उस भूमि पर, इन्हें फिर से तुम्हें ले जाना है;
इस मकसद की खातिर गौतम, तुम्हें दोबारा आना है।
भारत को मिलकर सबने, दूसरा घर बनाया है;
वर्षों बीत गए, पर तिब्बत को नहीं भुलाया है।
चीन का शोषण देख दुनिया ने, चुनी भूमिका मूकदर्शक की;
बुद्ध तेरे भक्तों को, इंतज़ार पथ प्रदर्शक की।
इंतज़ार करते-करते, कईयों ने आंखें बंद किए।
शुद्धोदन पुत्र! जलाने होंगे, तुम्हें उम्मीदों के दिये।
ऐसा ना हो कि तेरे आने का, हर आस छूट जाए:
भक्त तुम्हारे जीवन भर के लिए तुमसे ना रुठ जाए।
क्या ताकतवर देशों की, हर मनमानी माफ है ?
मायापुत्र! बताओ आकर, घर लूटना पाप है।
प्रवासियों को विश्वास है, अंधरे से ताकतवर प्रकाश है;
आज़ादी की तमन्ना है, सिद्धार्थ की तलाश है।