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Nishant Kumar

Tragedy

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Nishant Kumar

Tragedy

मैं बेटा हूं उस घाटी का

मैं बेटा हूं उस घाटी का

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एक घाटी बड़ी हसीन है, चलो आज उसकी कहानी कहता हूं

मैं बेटा हूं उस घाटी का, बेघर अपने देश में रहता हूं


मैं हूं पर्वतों की उस भूमि का, एक बदकिस्मत पंडित

जिस भूमि के कुछ हत्यारों ने, किया है मुझ को दंडित


वो साल 1990 था, जनवरी की मनहूस रात थी

काफिर काफिर की गूंजे थी, बचने की ना कोई राह थी


 मस्जिदों ने ऐलान किया, सिर्फ निज़ाम ए मुस्तफा चलेगा

 एक पल में हमने जान लिया, वहां अब सिर्फ आतंक पलेगा


 फिर तो सब उजागर है, हैवानों ने क्या कुकर्म किए

 हमें अपना दुश्मन बता, महिलाओं से दुष्कर्म किए


न जाने कितने मंदिर टूटे, जले सैकड़ों घर

 उड़ी धज्जियाँ कानून की, देश सोया रहा मगर


 दुश्मनों ने उठाए थे हथियार, मैं था कमजोर दीवार

अपनी नज़रों के सामने ही खोया अपना परिवार


हजारों लाखों की भीड़ में, आज मैं भी एक शरणार्थी हूं

वर्षों लंबे इम्तिहान का, एक भाग्यहीन परीक्षार्थी हूं


न्याय पाने की मंशा से, हर चौखट पर मैं जाता हूं

 एक कमजोर असहाय सा, दर-दर मैं ठोकर खाता हूं


तीस वर्ष हैं बीत चुके, हर एक पल मुझ पर भारी है

वर्षों पहले शुरू हुई, न्याय की लड़ाई जारी है


दिल्ली की तंग गलियों में, रहने को हूं आज मजबूर

ना जाने किस बात की सजा मिली, जन्मभूमि से हो गया दूर


बस यही कहानी थी मेरी, हर एक से यही मैं कहता हूं

 मैं बेटा हूं उस घाटी का, बेघर अपने देश में रहता हूं



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