सावन
सावन
लेकर कलम हाथ मे बैठी लिखने को मन के उद्गगार!
इतने मे आया सावन और झूमकर बरसा मेरे द्वार!!
तन मन पुल्कित हुआ कुछ ऐसा खुद पर नहीं रहा एतबार!
छोड़छाड़ कर कलम और काग़ज़ मैं जा पहुँची छत के द्वार!!
भीगी जुल्फों ने की अठखेली चूमकर रुखसार मेरा!
शीतल पवन भी छेड़े मुझको उड़ा उड़ाकर आँचल मेरा!!
हरियाली चूड़ी भी देखो कैसे शोर मचाती है!
पायल के घुँघरू संग देखो मिलकर शोर मचाती है!!
उमड़ घुमड़ घनघोर घटाएँ देखो मुझे सताती हैं!
परदेसी बालम की मुझको बेहद याद दिलाती है!!
भेजूंगी पैगाम पिया को तुम बिन सावन सूना है!
मुझको तुम संग बागों मे झूलना झूला है!!