दर्द
दर्द
नाखून बड़े करके मैंने अपने घाव को जख़्मी कर डाला।
रक्त बह रहा उनसे अब और होठों से सिसकी फूट रही।।
दर्द लहू बन कर छलक रहा जीने की हसरत भी छूट गई।
कहाँ छुपे हो मौला मेरे अब तो आस की डोर भी टूट गई।।
आह ने तोड़ी बंदिशे सारी ज़मी आसमां भी कराह उठा।
पर तेरी रहमतों की बख़्शिश क्यों मेरे मुकद्दर से रूठ गई।।