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Nand Kumar

Tragedy

4  

Nand Kumar

Tragedy

पृथ्वी की पीड़ा

पृथ्वी की पीड़ा

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कहने को कहते पृथ्वी हम सब की माता है,

पर कहो कौन कौन अपना फर्ज निभाता है।।


पय रूप मे छाती से निचोड़कर नीर,

उसकी नमी को अनवरत मिटाते हो ।


डाल डाल जहरीले रसायन उसको ,

विषकन्या सा जहरीला बनाते हो।


हरियाली रूपी सुन्दर बस्त्रो का ,

दुशासन सा हरण करते हो।


बनाकर बहुमंजिले भवन उसके ,

ह्रदय पर उनका भार धरते हो।।


नदियां नाले झीले ताल सरोवर सभी ,

 आवासो मे तुमने तब्दील कर डाले ।


दिखते तो बड़े ही सुंदर भोले भाले ,

 मगर भीतर से दिल के हो बहुत काले।।


घमंड सब कुछ बनाने का तुम्हे एक दिन ,

तुम्हे सुविधाओ सहित विदा कर देगा।


प्रकृति का विनाश तुम्हारे जीवन का उपवन ,

एक न एक दिन अवश्य ही उजाड़ देगा ।


मै तो सहनशील हूं सब सब सहन कर लूंगी ,

याद रहे तेरे पापों का प्रतिशोध लेकर ही रहूँगी ।।



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