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Vijay Kumar

Tragedy

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Vijay Kumar

Tragedy

ये कैसा हाहाकार है?

ये कैसा हाहाकार है?

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दो पल की सांसो के लिए ये कैसा हाहाकार है

सिस्टम है बेबस और इंसान - इंसान लाचार है 

हंसते गाते पलों में लगा ये कैसा ब्रेक है 

सड़के होती सूनी और स्कूल कॉलेज में रोक है, 


स्वास्थ्य सेवाओं में बढ़ रहा ज्यादा भार है 

पल-पल में रुकती सासें और मरीजों का अम्बर है 

चारों और दिखता दुःख और ग़मों का शौर है 

दम तोड़ती उम्मीदें और सुखों का न कोई भोर है, 


मुफ्त मिलती आँक्सीजन और पानी का कैसा हाल है 

मुहाँ मांगी है कीमत और इन्ही का बुरा हाल है 

बढ़ती हुई लाशें और शमशान में हर और चीख पुकार है 

आँखों में है आंसू और जेहन में सवाल ही सवाल है, 


पल की सांसो के लिए ये कैसा हाहाकार है

सिस्टम है बेबस और इंसान - इंसान लाचार है, 


पारिवारिक दुःख की घड़ी में अब न कोई सहारा है 

जिंदगी और मौत से लड़ते हुए सिस्टम से ही वो हरा है 

कहीं खौफनाक मंज़र तो कहीं लापरवाही का नज़ारा है 

कोरोंना की इस लड़ाई में अब वैक्सीन ही सहारा है, 


दो गज की दूरी और मास्क का सवाल है

सावधानी और सतर्कता ही इसका कुछ इलाज है

मिलकर सब एक - दूसरे का सहारा बने

भीड़-भाड़ से दूर रहकर नियमों का पालन करे 


दो पल की सांसो के लिए ये कैसा हाहाकार है

सिस्टम है बेबस और इंसान - इंसान लाचार है!




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