ज़माना
ज़माना


कभी लिखता है रंगीन कलम से तो कभी काली स्याही छिड़क देता है।
चलाता है आसमां पे तो कभी जमीं पे फेंक देता है।।
बड़ा ज़ालिम ज़माना है जहां न हो ख़ताएँ मुकर्रर।
वहाँ भी ये गुनाहों का ताज़ बड़ी सादगी से पहना देता है।।
कभी लिखता है रंगीन कलम से तो कभी काली स्याही छिड़क देता है।
चलाता है आसमां पे तो कभी जमीं पे फेंक देता है।।
बड़ा ज़ालिम ज़माना है जहां न हो ख़ताएँ मुकर्रर।
वहाँ भी ये गुनाहों का ताज़ बड़ी सादगी से पहना देता है।।