जलियाँवाला बाग
जलियाँवाला बाग
उमंग और उल्लास का होता बैसाखी त्योहार
नयी फसल का भी दे जाता
हम सबको उपहार
दर्ज मगर तारीख यही इतिहास के पन्नों पर भी
बड़ा ही काला दिन था वह
उस दिन भी थी बैसाखी
सन उन्नीस सौ उन्नीस था
निर्दोष दिये गए मार
इक जालिम अंग्रेज ने कर डाला था नरसंहार
शान्ति पूर्ण सभा थी चलती
जलियांवाला बाग में
खबर मिली दुष्ट जालिम को
घुस आया वह बाग में
जनरल डायर नाम था उसका
हम तो कहेंगे राक्षस
सारे रास्ते बंद कर दिये
एक ही खुला था बस
उस पर भी वह स्वयं खड़ा था
लेकर राक्षसी सेना
जो बेचारे भागे उधर
उनको गोलियों से भूना
जान बचाने कूद पड़े फिर
वह सब कुयें के भीतर
लाशों से पट गया कुँआ फिर
भर गया नीचे से ऊपर
ऊधमसिंह एक शेर हमारा
अपनी आँख सब देखा
बदला इसका लेना ही है
मन में करी प्रतिज्ञा
सजा अपराधी को देने वह
लंदन तक जा पहुँचे
बीस बरस में आया मौका
पर वह नहीं थे चूके
जलियाँवाला बाग में बाकी अब भी सभी निशानी
मासूमों की निर्मम हत्या की वह सुनाये कहानी
सौ बरस से हुये हैं ऊपर अब तो इस घटना को
पर अब भी हम भुला सके ना
व्यथित करे यह मन को
बैसाखी त्योहार के लिये दिल हर्षित है होता
जलियांवाला बाग के लिए पर यह आज भी रोता।
Ballad
#SMBoss
