क्यों ईश्वर रूठा सा है?
क्यों ईश्वर रूठा सा है?
संनाटा है बाजारों मे,
शहर ये सूना सूना सा है।
कुछ तो ग़लत किया है हमने,
वर्ना क्यों ईश्वर रूठा सा ह?
बहुत तेज़ी से बड़े थे हम,
बेलगाम से चले थे हम,
तर्रकी की दौड़ मे खुद को,
मसीहा समझने लगे थे हम।
रुक गयी ये सारी दुनिया,
क़ैद हो गए घरों मे हम।
जो चाँद से भी आगे निकल चले थे,
रुक गए वो सारे कदम।
इस रंग बिरंगी दुनिया में,
जाने ये कैसा अजब दौर है,
शहर भर में सन्नाटा है,
और दिलों में भरा शोर है।
मिलना मिलाना छूटा सा है,
हर ख़्वाब जैसे टूटा सा है।
कुछ तो ग़लत किया है हमने,
वर्ना क्यों ईश्वर रूठा सा है ?