गुरु तुम्हारी महिमा में
गुरु तुम्हारी महिमा में
खेले -कूदे और बढ़े हम,
बने शिष्ट और भले हम,
जिसके अम्बर तले पले हम,
गुरुवर वो तरुवर तुम हो,
जीवन तप के सफर में मेरे,
प्राप्त मुझे मेरे वर तुम हो।(१)
मार्ग दुर्गम कितनी बाधाएँ,
पार हो कैसे तुम बतलाए,
मेहनत लगन निष्ठा व धैर्य,
गुर गुरु ने हमें सिखलाए,
कर दूँ कठिन कार्य कोई ,
कर्म हैं मेरे कर तुम हो।(२)
हुआ भ्रमित मैं जब जब
दूर किए शंशय तब तब,
तम में खुद को डूबा पाया,
जुबा पे नाम तुम्हारा आया,
ज्ञान पूंज मेरे मन से गुजरी,
दिन के पहले पहर तुम हो।(३)
सेवा ही है लक्ष्य तुम्हारा,
मिल गया मुझे भी किनारा,
कर सकूँ भाँति तुम्हारे सेवा,
है यही अब प्रण हमारा,
पथ प्रभु तक तुम प्रभु,
खुद ख़ुदा का दर तुम हो।(४)
विराट तुम्हारा रूप सादा,
मात-तात में, तुम ही भ्राता
तुम प्रकृति में, तुम मित्र में,
हर शै से है तुम्हारा नाता,
तुम बिन यह संसार शून्य सा
तुम ही धरती अम्बर तुम हो।(५)