STORYMIRROR

Madhu Gupta "अपराजिता"

Tragedy

4  

Madhu Gupta "अपराजिता"

Tragedy

ग़ज़ल

ग़ज़ल

1 min
32


कभी रुक-रुक के सताती है कभी दिल से फ़िसल जाती है। 

बड़ी कम-ज़र्फ़ हैं यादें उलझा कर अकेला मोड़ पे छोड़ जाती है।।


दहकती कभी अंगारों सी कभी सर्द हवाओं सी टीस उठाती हैं।

बरसते सावन की रिमझिम में फिर अकेला रोता छोड़ जाती हैं।।


बड़ी कम-ज़र्फ हैं यादें उलझा कर अकेला मोड़ पे छोड़ जाती हैं। 


क़ातिलाना वार दिल पे करती है कभी आँखों से दरिया बहाती हैं। 

समुद्र में उठती लहरों सा तन मन में तूफ़ान सा कोहराम छोड़ जाती हैं।। 


ना सोती है ना सोने देती है रात को तकिया तले आंसू बहाती हैं। 

बड़ी बेरहम है यादें किसी भी शर्त पर ना ये समझौता करती हैं।।


सुकून ले जाती साथ अपने और जिंदगी का हर लम्हा बोझिल बनाती हैं। 

करो लाखों जतन फिर भी यादें अपना मकाँ ज़िंदगी में छोड़ ही जाती हैं।।



Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Tragedy