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Prem Bajaj

Abstract

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Prem Bajaj

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बेरूखी उनकी

बेरूखी उनकी

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भंवरे सा शौंक की आदत नहीं है हमें 

हम तो लज़्ज़ते -इश्क का शौक़ रखते हैं।


कटी है ज़िन्दगी इन्तज़ार में उनके फिर 

भी रंज नहीं उनकी बेरूखियत का 

दिल ही दिल में जलते रहे हम

लब से उफ़ तक ना निकाली।


वो बेवफ़ा ऐसे निकले कि हमारे ही मकान

पर कब्र बनाने का उन्होंने एलान कर दिया।


निकले थे हम उनकी महफ़िल से अश्कों 

से भरी निगाह लेकर ,एक बार भी उन्होंने 

आवाज़ ना लगाई हम देखते रहे

 फिर भी मुड़ - मुड़कर।


किया फिर भी इन्तज़ार चांदनी रातों

में, एक आस थी कि वो आएंगे 

कब्र पे मेरी फूल लेकर।


ना ही वो आए ना उनका पैग़ाम आया 

एक आखिरी गुज़ारिश है उनसे 

अगर मिल जाएं हम किसी मोड़ पर 

तो देख कर यूं नज़रें मत चुराना।


बस देखा है कहीं तुम्हें इतना कह 

के गले लगाना जी उठेंगे हम 

तेरे अधुरे इश्क में भी पूरा जी लेंगे हम।


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