कल्पवृक्ष गणनाथ - दोहे
कल्पवृक्ष गणनाथ - दोहे
आस्था तो मकरंद है, शिव सुगंध समावेश।
भक्त व्यथा तू जाने, भक्त न जाने भेष।।
मै मै करता मै गया, अब रहा महाकाल।
एक जाप से शून्य मैं, राजे माया जाल।।
संजीवन बाने भगत, रुद्र जोग अभिराम।
चलती को ही जिंदगी,अगम्य पथ अविराम।।
तोहे मेल आस किरण, लावे प्रेम सावन।
हिय गागरी छलके है,बेल शिव मनभावन।।
राखे निकुंज हरी अत्रि, शिव को नाम विशाल।
जन्म कर्म में राजे भद्र, जयंत यजंत निहाल।।
शारंगपाणि जाप से, सांब सारंग मिलन।
भस्मशायी को दर है, एकाक्ष मधु विहलन।।
ऋतुध्वज लहर अंबुजा,कृतिवासा देख अनंत।
'सिंधवाल' को लालसा, हिय रजे कालकंठ।।