फरिश्ता मेरा
फरिश्ता मेरा
माना उसने
मुझे पूरा आज़ाद
रखा है हर सिम्त
की उड़ान को लेकिन
वही सजाए भी रखता है
मेरी राह घरौंदे में
लौटने की।
उसे पता है
मेरा मन छू कर
किसी आसमाँ का कोना
टटोलेगा वकार अपना
और लौटेगा उसी के
महफ़ूज अंक में।
वह समझता है
हर तरह की भीड़ में मेरे
अटपटे बेलौस अंदाज़ को
मेरे खुद से इखलास को
जो झलकना ही है
मेरे होने को।
वो खामोशी से
मुझे देखता तो है दर्द से जूझते
जज्ब करते तल्ख अहसास,
फिर बिना अहसान जताए
पोंछता है मेरे जमे अश्क़
अपनी खास मुस्कराहट
सिर्फ मुझे देते हुए।
वह यकीनन
फरिश्ता ही है मेरा,
इस अजीबोग़रीब दुनिया में
जहां गलतियां बिखरी पड़ी है
लेकिन वो मुझे
इंसान मानता हुआ
माफ करता है।