STORYMIRROR

Kanchan Prabha

Tragedy

4  

Kanchan Prabha

Tragedy

पाखंड

पाखंड

1 min
520

क्या कहुँ मैं इस पाखंड की बात

इसका स्वरूप है काली रात

फैला है ये कण कण में 

होता शायद जन जन में 

फ़ले फुले पाखंड से ही राजनीति

नेताओं में भरे हैं सभी कुरीति

सिनेमा में भरा पाखंड ही पाखंड

चाहे हो मुंबई चाहे हो झारखण्ड 

कार्यालय हो या कोई दूकान

कोई घर हो चाहे मकान

होता है हर जगह पाखंड

इससे होता हानि प्रचण्ड 

देश हित में जो सोचे अपना हित

और करते रहते बुरे बुरे कृत

भ्रष्टाचार पर सब मौन खड़े हो

चाहे वे लोग कितने ही बड़े हो

पाखंड तो है नाम इसी का

जो बन जाता जहर शीशी का

किसी बेटी का चीर हरण हो

या किसी अबला का उत्पीड़न हो

फिर भी उत्पीड़क को बड़ा घमंड

इन सबको ही कहते पाखंड!


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Tragedy