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Kanchan Prabha

Tragedy

4.6  

Kanchan Prabha

Tragedy

पाखंड

पाखंड

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क्या कहुँ मैं इस पाखंड की बात

इसका स्वरूप है काली रात

फैला है ये कण कण में 

होता शायद जन जन में 

फ़ले फुले पाखंड से ही राजनीति

नेताओं में भरे हैं सभी कुरीति

सिनेमा में भरा पाखंड ही पाखंड

चाहे हो मुंबई चाहे हो झारखण्ड 

कार्यालय हो या कोई दूकान

कोई घर हो चाहे मकान

होता है हर जगह पाखंड

इससे होता हानि प्रचण्ड 

देश हित में जो सोचे अपना हित

और करते रहते बुरे बुरे कृत

भ्रष्टाचार पर सब मौन खड़े हो

चाहे वे लोग कितने ही बड़े हो

पाखंड तो है नाम इसी का

जो बन जाता जहर शीशी का

किसी बेटी का चीर हरण हो

या किसी अबला का उत्पीड़न हो

फिर भी उत्पीड़क को बड़ा घमंड

इन सबको ही कहते पाखंड!


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