नवगीत
नवगीत
जाने कब और कहाँ खो गए
अपनापन संबंध पुराने
संगी साथी छूट गए सब
सपन सलोने टूट गए अब
जिसको भी अपना था माना
मन की पीर वही कब जाना
जब भी अपनी बात सुनाई
दुनिया लगती हँसी उड़ाने
भूले किस्से राजा-रानी
हिस्से-हिस्से दादा-नानी
सीख रहें हैं अब तो बच्चे
रिश्ते कितने सतही कच्चे
पथराई सब रूठी आँखें
आता है अब कौन मनाने
तोड़-तोड़ घर महल बनाए
गाँव मिटा कर शहर बसाए
सावन सूना टूटे झूले
चलते-चलते मंज़िल भूले
व्याकुल पंथी धूमिल रस्ता
कौन मिलेगा प्यास बुझाने।
