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Anju Motwani

Drama

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Anju Motwani

Drama

नवगीत

नवगीत

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गुल्लक में जमा हैं कुछ अरमान कुछ ख्वाब

एक से बढ़कर एक, सब के सब लाजवाब।


सोचा, पूरी जमा पूंजी खर्च कर दूँ एक ही बार

कोशिशें की कई लेकिन हम दिल से गये हार

चाह कर भी हम रख ना पाये इनका कोई हिसाब।


पुराने कुछ नये, कुछ चलन में कुछ बेकार

जंग लगे अधपके चिल्लर सपने कब होते साकार

आँखों के रास्ते बहता नाकामी का सैलाब।


बजते रहे, खनकते रहे, जुड़ते रहे, बढ़ते रहे

कंजूसी की बहुत,रखे-रखे रंग अपना बदलते रहे

क्यों, कैसे, कब जैसे सवालों का मिला ना कोई जवाब।


आड़े वक्त में काम आयेगी यही तो जागीर अपनी

सबकी अपनी अपनी, जैसी करनी वैसी भरनी

जिंदगी है छोटी लेकिन दर्ज़ किस्से हैं बेहिसाब।।


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