नफ़रत के मंजर
नफ़रत के मंजर
ग़म के रोज़ भरे मंजर देख रहा हूँ!
खुशियों के होते बंजर देख रहा हूँ
फ़ूल कभी जो देता था उल्फ़त का ही
उन हाथों में अब पत्थर देख रहा हूँ
पेश मुहब्बत से जो आता था मुझसे
तल्ख़ भरे उसके तेवर देख रहा हूँ
हाँ जो हाथ कभी तस्वीर बनाते थे
उसके हाथों में ख़ंजर देख रहा हूँ
यार वफ़ा से दें रोज़ सहारा मुझको
रोज़ नगर में वो मैं दर देख रहा हूँ
जिसने उल्फ़त से यार बनाया घर था
उनको होते मैं बेघर देख रहा हूँ
और नहीं कोई काम उसे तो आता
मैं लड़ते झड़ते दिन भर देख रहा हूँ
प्यार सभी जो बाटे फिरता है "आज़म"
लगते नफ़रत की ठोकर देख रहा हूँ.
आज़म नैय्यर