नारी
नारी
ऐ नारी !
ना ही तू अबला है,
ना ही तू बेचारी है,
अगर तुमने ठान लिया,
तो तू दुनिया पे भारी है।
पुरुषों को तुमने जन्म दिया,
और तुमने ही तो मान दिया।
पिता, भाई, पति के रूप,
बारम्बार सम्मान दिया।
फिर भी इस धरती पर,
तू अबला कहलाई है।
पर उनको कौन कहे ?
सब तेरी ही परछाई है।
अगर तुममें सीता है,
तो दुर्गा भी तो बसती है।
हर बार अग्नि परीक्षा ही क्यों ?
तुझमें संहार की भी शक्ति है।
सतयुग से कलयुग तक,
तुमने पुरुषों का साथ दिया।
कभी दुर्गा बन कभी काली बन,
दुष्टों का संहार किया।
कभी तो रानी लक्ष्मी बन,
आजादी के लिए वार किया।
फिर क्यों इस तकनीकि युग में,
तू कमजोर बन जाती है।
कभी वासना और दहेज़ के आगे,
सूली पर चढ़ जाती है।
ऐ नारी, तुम जागो
और पहचानो खुद को।
ना ही तू अबला है,
ना ही तू बेचारी है।
अगर तुमने ठान लिया तो
तू दुनिया पे भारी है।।
