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Lokeshwari Kashyap

Drama Classics Inspirational

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Lokeshwari Kashyap

Drama Classics Inspirational

नारी तेरे कितने रूप

नारी तेरे कितने रूप

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तू सुख का आधार, तुझसे है जीवन में सुख l

तुम हो ऐसी मनभावन जैसी हो सर्दियों की धूप l

जैसा हो रिश्ता वैसा बन जाता है तेरा रूप l

मां, बेटी, बहन, सखी, नारी तेरे कितने रूप l


कर्तव्य निभाने में तुम रहती हो सदा मशगुल (मगन )l

पर अपनी परवाह करने में क्यों तुम जाती हो चूक?

सहनशक्ति में हो तुम धरती प्रकृति का रूप l

मां, बेटी, बहन, सखी, नारी तेरे कितने रूप l



तुम सरस्वती तुम लक्ष्मी अन्नपूर्णा की हो प्रतिरूप l

दुष्टता का अंत करने धारण करती हो काली का रूप l

तेरे आगे नतमस्तक होते देव, दानव, दरीद्र, भूप (राजा )l

मां, बेटी, बहन, सखी, नारी तेरे कितने रूप l



तेरा वात्सल्य निखार आता लेकर माता का रूप l

सखी बन के बांटती हो सबकी सारे सुख और दुख l

तेरे गुणों के बखान में दुनियाँ क्यों कर जाती है चूक l

मां, बेटी, बहन, सखी, नारी तेरे कितने रूप l



हर रिश्ते, हर रूप में दिखे तेरा रूप अनूप l

तेरे साथ का एहसास ऐसा जैसे कभी छाँव कभी धूप l

अपना दर्द बयां करने में रह जाती हो क्यों मूक l

मां, बेटी, बहन, सखी, नारी तेरे कितने रूप l



तुम अबला नहीं तुम हो शक्ति का साक्षात स्वरूप l

अपने सम्मान की रक्षा स्वयं करो धर काली का रूप l

अपनी शक्ति क्षमता को पहचानने में मत कर चूक l

मां, बेटी, बहन, सखी, नारी तेरे कितने रूप l


तेरा जीवनपथ सुखमय होगा नहीं चुभेगा कोई शूल l

तेरी हिम्मत के आगे पर्वत भी हो जाएगा धूल l

भर ले ऊंची उड़ान कर हौसलों के पंख मजबूत l

मां, बेटी, बहन, सखी, नारी तेरे कितने रूप l


सदा मिलेगी सफलता मंजिल नहीं रह पायेगी कभी दूर l

जब मुस्कुराती हो तुम बढ़ जाता है चेहरे का नूर l

यह जो मिला है जीवन इसे तुम जी लो भरपूर l

मां, बेटी, बहन, सखी, नारी तेरे कितने रूप l


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