नारी तेरे कितने रूप
नारी तेरे कितने रूप
तू सुख का आधार, तुझसे है जीवन में सुख l
तुम हो ऐसी मनभावन जैसी हो सर्दियों की धूप l
जैसा हो रिश्ता वैसा बन जाता है तेरा रूप l
मां, बेटी, बहन, सखी, नारी तेरे कितने रूप l
कर्तव्य निभाने में तुम रहती हो सदा मशगुल (मगन )l
पर अपनी परवाह करने में क्यों तुम जाती हो चूक?
सहनशक्ति में हो तुम धरती प्रकृति का रूप l
मां, बेटी, बहन, सखी, नारी तेरे कितने रूप l
तुम सरस्वती तुम लक्ष्मी अन्नपूर्णा की हो प्रतिरूप l
दुष्टता का अंत करने धारण करती हो काली का रूप l
तेरे आगे नतमस्तक होते देव, दानव, दरीद्र, भूप (राजा )l
मां, बेटी, बहन, सखी, नारी तेरे कितने रूप l
तेरा वात्सल्य निखार आता लेकर माता का रूप l
सखी बन के बांटती हो सबकी सारे सुख और दुख l
तेरे गुणों के बखान में दुनियाँ क्यों कर जाती है चूक l
मां, बेटी, बहन, सखी, नारी तेरे कितने रूप l
हर रिश्ते, हर रूप में दिखे तेरा रूप अनूप l
तेरे साथ का एहसास ऐसा जैसे कभी छाँव कभी धूप l
अपना दर्द बयां करने में रह जाती हो क्यों मूक l
मां, बेटी, बहन, सखी, नारी तेरे कितने रूप l
तुम अबला नहीं तुम हो शक्ति का साक्षात स्वरूप l
अपने सम्मान की रक्षा स्वयं करो धर काली का रूप l
अपनी शक्ति क्षमता को पहचानने में मत कर चूक l
मां, बेटी, बहन, सखी, नारी तेरे कितने रूप l
तेरा जीवनपथ सुखमय होगा नहीं चुभेगा कोई शूल l
तेरी हिम्मत के आगे पर्वत भी हो जाएगा धूल l
भर ले ऊंची उड़ान कर हौसलों के पंख मजबूत l
मां, बेटी, बहन, सखी, नारी तेरे कितने रूप l
सदा मिलेगी सफलता मंजिल नहीं रह पायेगी कभी दूर l
जब मुस्कुराती हो तुम बढ़ जाता है चेहरे का नूर l
यह जो मिला है जीवन इसे तुम जी लो भरपूर l
मां, बेटी, बहन, सखी, नारी तेरे कितने रूप l