नादान परिंदा
नादान परिंदा
बहुत नादान था वो परिंदा
आँख बंद किये डाल पे बैठा
शिकारी नहीं देख सकता मुझे
दिलाता रहा खुद को भरोसा।
शिकारी भी खेल रहा था
ढूंढ़ने का नाटक कर रहा था
कई साथी अलविदा कह गए,
कहीं और घरौंदा बनाने उड़ गए
बहुत नादान था वो परिंदा
आँख बंद किये डाल पे बैठा।
अकेलेपन में परिंदा छटपटाया
फिर नादानी से खुद को समझाया
वो साथी सच्चे नहीं थे
वो साथी मेरे अपने नहीं थे।
बहुत नादान था वो परिंदा
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आँख बंद किये डाल पे बैठा
फ़िर किसी ने झंझोड़ के जगाया
शिकारी के निशाने पे है वो,
उसे दिखाया
परिंदा बहुत घबराया
बचपन बीता जिस डाल पे,
उसे छोड़ नहीं पाया
बहुत नादान था वो परिंदा।
आँख बंद किये डाल पे बैठा
छुपते छुपाते, छटपटाते
उड़ ही गया एक दिन
पर अपना एक हिस्सा
वहीं छोड़ आया।
अब आँखें बंद नहीं
करता वो परिंदा
अब मुश्किलों से लड़ता है
अपनी नादानी को
याद करके हँसता है।