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अंजना बख्शी

Drama Tragedy

1.0  

अंजना बख्शी

Drama Tragedy

मुनिया

मुनिया

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‘मुनिया धीरे बोलो

इधर-उधर मत मटको

चौका-बर्तन जल्दी करो

समेटो सारा घर।’


मुनिया चुप थी

समेट लेना चाहती थी

वह अपने

बिखरे सपने,


अपनी बिखरी बालों की लट

जिसे गूंथ माँ ने कर दिया था

सुव्यवस्थित।


‘अब तुम रस्सी मत कूदना

शुरू होने को है

तुम्हारी माहवारी

तुम बड़ी हो गई हो

मुनिया।“


सच माँ

क्या मैं तुम्हारे

जितनी बड़ी हो गई हूँ

क्या अब मेरी भी हो जाएगी शादी।


”मेरे जैसे ही मेरी भी मुनिया...?

और उसकी भी यही जिन्दगी...

नहीं माँ

मैं बड़ी नहीं होना चाहती।“


कहते-कहते टूट गई

मुनिया की नींद

उस वृक्ष की पत्तियाँ

आज उदास हैं

और उदास हैं उस पर बैठी

वह काली चिड़िया।


आज मुनिया नहीं आयी खेलने

अब वह बड़ी हो गई है न

उसका ब्याह होगा।


गुड्डे-गुड्डी, खेल-खिलौनों

की दुनिया छोड़

मुनिया हो जायेगी

उस वृक्ष की जड़-सी स्तब्ध।


हो जायेगी उसकी जिन्दगी

उस काली चिड़िया-सी

जो फुदकना छोड़

बैठी है,

उदास

उस वृक्ष की टहनी पर !


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