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कौन हो तुम

कौन हो तुम

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तंग गलियों से होकर

गुज़रता है कोई

आहिस्ता-आहिस्ता


फटा लिबास ओढ़े

कहता है कोई

आहिस्ता-आहिस्ता


पैरों में नहीं चप्पल उसके

काँटों भरी सेज पर

चलता है कोई

आहिस्ता-आहिस्ता


आँखें हो गई हैं अब

उसकी बूढ़ी

धँसी हुई आँखों से

देखता है कोई

आहिस्ता-आहिस्ता


एक रोज़ पूछा मैंने

उससे,

कौन हो तुम

‘तेरे देश का कानून’

बोला आहिस्ता-आहिस्ता !!



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