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अंजना बख्शी

Tragedy

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अंजना बख्शी

Tragedy

भेलू की स्त्री

भेलू की स्त्री

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सूखी बेजान

हड्डियों में

अब दम नहीं

रहा काका।


भेलू तो चला

गया,

और छोड़ गया

पीछे एक संसार।


क्या जाते वक़्त

उसने सोचा भी

ना होगा

कैसे जीएगी मेरी

घरवाली ?


कौन बचाएगा उसे

भूखे भेड़ियों से ?

कैसे पलेगा,

उसके

दर्जन भर बच्चों

का पेट ?


बोलो न काका ?

उसने तनिक भी

ना सोचा होगा

मेरी जवानी के बारे में ?


तरस भी न आया

होगा मुझ पर ?


कल्लू आया था कल

माँगने पैसे,

जो दारू के लिए,

लिये थे....भेलू ने

कहाँ से लाती पैसा ?


सब कुछ तो बेच

दिया था उसने

बस, एक मैं ही बची थी

कि चल बसा वो !!


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