अंजना बख्शी
Literary Colonel
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किताबें हमें बनाती हैं, किताबें हमें गढ़ती हैं अंजना बख्शी आह को चाहिए एक उम्र असर होने तक कौन जीता है तेरी जुल्फ़ के सर होने तक. मेरी सारी ज़िन्दगी ग़ालिब के ही शेर की तरह गुजरी, पैदा होते ही अंधेरे घर में जैसे दुआएं गुम हो गई थीं. बहुत अंधेरा था. होश संभालने वाली लड़की खरगोश-सी मासूम की तरह तो थी... Read more

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