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बिटिया बड़ी हो गई

बिटिया बड़ी हो गई

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देख रही थी

उस रोज़ बेटी को

सजते-सँवरते

शीशे में अपनी

आकृति घंटों निहारते

नयनों में आस का

काजल लगाते,


उसके दुपट्टे को

बार-बार सरकते

और फिर अपनी उलझी

लटों को सुलझाते

हम उम्र लड़कियों के

साथ हँसते-खिलखिलाते ।


माँ से अपनी हर बात छिपाते

अकेले में ख़ुद से

सवाल करते,

फिर शर्मा के,

सर को झुकाते ।


और फिर कभी स्तब्ध

मौन हो जाते

कभी-कभी आँखों

से आँसू बहाते

फिर दोनों हाथों से

मुँह को छिपाते ।


देखकर सोचती हूँ उसे

लगता है,

बिटिया अब बड़ी

हो गई है !!


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