मुख्तसर सी बात थी(सॉनेट)
मुख्तसर सी बात थी(सॉनेट)
हमने अपने लहू से दिल-ए- ब्यां लिख डाला
उसकी नजर में ये मुख्तसर सी बात थी
आँखों के अश्क बहे तो बहते चले गये
उसकी रूह में मेरे दर्दों के असर की बात थी
हमें तो जाम पीना पड़ा मजबूरी में
उसकी मेहरबानी हो तो बस नजर की बात थी
तेरी रुखसत के बाद हम फ़ना होते चले गये
तेरी कसम उस रोज बस एक खबर की बात थी
रहने को तो महल भी थे लाजवाब मेरे पास
तेरे दिल के किसी कोने में बस बसर की बात थी
इन्तजार तो ताऊम्र भी करना मंजूर था मुझे
बस चंद दिनों की तेरी सबर की बात थी
लोग देखते जरूर जनाजा उठते तेरे दीवाने का
बस तेरे हाथों से चुटकी भर जहर की बात थी