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Gaurav Dhaudiyal

Drama Others

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Gaurav Dhaudiyal

Drama Others

मुक़द्दर में ना सही तू दिल में तो है

मुक़द्दर में ना सही तू दिल में तो है

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हर प्रेम कहानी में इश्क़ मुकम्मल का ही फ़िक्र होता है

आशिक़ से देवदास बनने का ही अब बस ज़िक्र होता है

मुहब्बत निभाने के वादे होते हैं

रूठने मनाने के बहाने होते हैं

उसको अपना बनाने के इरादे होते हैं

और या फिर दिल टूट जाने के फ़साने होते हैं


मेरी समझ में इश्क़ एक ऐसा पड़ाव है या फिर यूँ कहिए की ये ऐसा अध्याय है

जहां आप कई भावनाओं के भँवर में उतरते हैं

इश्क़ एक ऐसा समंदर हैं जहां आप जाने अनजाने में 

बड़ी ही आसानी से प्रवेश तो कर लेते हैं 

मगर जब आपका विवेक समझदार होता हैं तब तक आप 

उस भँवर की जटिलता में घिर चुके होते हैं

इसे मैं एक अध्याय इसलिए बोलता हूँ

क्योंकि इश्क़ को आप सिर्फ़ एक छंद में नहीं बांध सकते

क्योंकि इस अध्याय में हमारी एक उमर बीत जाती हैं

हम कुछ ना कुछ नया सीखते हैं

नया महसूस करते हैं

ख़ुद के बारे में

अपने साथी के बारे में

सुख और दुख के दरमियान उस दाह भरे वक्त के बारे में

अपनी चुप्पी में क़ैद किए वह सभी इरादों के बारे में

उसके साथ शाम को जहां बैठ कर मैं अपना दिल रखता था

उन सभी किनारों के बारे में


अब तो इश्क़ हो गया 

अब खुद को क्या ही समझायें 

मन को तो फिर भी मार सकते हो 

भला दिल को कैसे मारा जाये

ख़ुद से तो हम दूर ही रहते थे

मगर तुझसे एक पल भी कैसे दूर रहा जाये

अब ये जो शोर मचल उठा हैं इन सन्नाटों में

तुम ही बताओ अब इसे कैसे बांधा जाये


उसका और मेरा रिश्ता सर्द रातों में उस अलाव जैसा हैं

जिसके में ज़्यादा क़रीब भी नहीं जा सकता 

और मेरे मन को ये भी मालूम हैं की उसकी ताप कुछ देर में बुझ जाएगी

मगर उस रिश्ते की ताप में सुकून हैं

जहां से मैं कभी दूर नहीं जाना चाहता हूँ

मुझे पता हैं की वो मुक़द्दर में नहीं हैं मेरे

मगर फिर भी मैं सिर्फ उसके करीब रहना चाहता हूँ


ऐसा सुकून जो किसी भटकते को राह मिलने पर होता है 

ऐसा सुकून जो किसी दुखी मन को सहारा मिलने पर होता है 

ठिठुरती हथेलियों को ताप मिलने पर होता हैं

संताप को वात्सल्य पर होता हैं

सिकंदर को अपनी जीत पर होता हैं

और अशोका को बुद्ध के करीब होता है

ऐसा सुकून 

मुझे उसके करीब होने पर होता हैं


अब सवाल यह हैं कि 

आगे क्या होगा 

कहते तो हैं की वही होगा जो मंजूर ख़ुदा को होगा

मगर जब आपकी कभी खुद से और ख़ुदा से बनी ही नहीं 

तो स्वाभाविक हैं की यहाँ भी आप हार ही जाओगे

मगर अब दुख नहीं होता

होता हैं भी तो उसके साथ बिताये हर पल को याद कर लेता हूँ

बस…..

जैसे ही उसका चेहरा मन में आता हैं

मेरे सारे दर्द ठीक हो जाते हैं


ये मेरी आख़री कविता उसके लिए 

जो मेरी ज़िंदगी को एक हसीन कहानी बना देती है 

जैसे कृष्णा राधा को अपनी बांसुरी दे गये थे और

उसके बाद उन्होंने तब ही बांसुरी बजायी जब राधा उनके पास आयी 

वैसे ही ये मेरी आख़िरी कविता उसके पास छोड़ रहा हूँ

उसके वापिस आने तक……………….



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