महारथी कर्ण
महारथी कर्ण
रवि सा तेज लिए ललाट पर
रंगभूमि में वह कौन आया है
है विमूढ़ सभी कुरु जन मन
धनुष पकड़े यह शूरवीर कौन आया है
क्या प्रभा है उसके बाणों में
क्या तेज है उसकी आंखों में
कवच कुंडल पहने वह युवा
आज वायु को बांधने आया है
वह वज्र काटने आया है
कौरव पांडव सभी स्तब्ध थे
ऐसा कौशल उसने दिखाया है
रंगभूमि में खड़ा परशुराम शिष्य
आज भीष्म के मन को भाया है
क्या व्यथा थी कुंती की आंखो में
क्यों प्रेम आज अश्रु बन कर आया है
वात्सल्य भरे स्वारो में उस योद्धा को
कुंती ने
पुत्र कर्ण कहकर बुलाया है
पुत्र कर्ण कहकर बुलाया है।