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Gaurav Dhaudiyal

Abstract

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Gaurav Dhaudiyal

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हमारा भगवान

हमारा भगवान

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बचपन की हर कहानियों में एक भगवान होता है

उनसे ही ये जीवन है 

उनसे ही सब प्रारम्भ है

उन कहानियों में यही सब एक विस्तार में होता है


मासूम सी आँखें

सपने संजोए जब इस जहां में उतरती है

छोटी छोटी ख़ुशियों में 

अपनी एक अलग ही दुनिया व्यतीत करती हैं

उन ख़ुशियों का भी एक भगवान होता है

हाथ जोड़कर सच्चे मन से जिसका उच्चार होता है


फिर काल गुजरता है 

और ऋतुएं बदलती है

उन मासूम आँखो की भी अब ज़रूरतें बदलती है

हसरतों की भीड़ में अब स्वार्थ की लकीरें सरकती है

उन हसरतों का भी एक भगवान होता है

ज़रूरत आने पर ही जिसका अब उच्चार होता है


चक्र काल का अति तीव्र होता है

जीवन का सत्य अत्यंत महीन होता है

भ्रम स्वार्थ का जब बिखर जाता है

सत्य उन आँखों में पुनः लौट आता है

उस सत्य का भी एक भगवान होता है

शून्य में विलीन है जो 

हमारे मन में ही उसका निवास होता है


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