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Gaurav Dhaudiyal

Abstract Drama

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Gaurav Dhaudiyal

Abstract Drama

वो कुछ बोलती नहीं

वो कुछ बोलती नहीं

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लफ़्ज़ों के बाज़ार में नुमाइशें हाल ए दिल की लगी थी

कोई शायर तो कोई आशिक़ की ज़मीन थी

एक बंद कूचे की ओर एक गुमसुम सी लड़की खड़ी थी

ऐसा लगा मानो उस बाज़ार में एक वही सिर्फ़ अमीर थी


क़रीब जाकर लगा मुझे कि शायद वो कुछ तो अजीब थी

ख़रीदा नहीं एक लफ़्ज़ भी जिसने 

भला ये कैसी अमीर थी

कुछ खामोशी बाद एक बात कही उसने

हाल ए दिल बयान किया अन आँखों से उसने

लफ़्ज़ नहीं उसकी आँखे कुछ कह गयी

पूरी बाज़ार में लफ़्ज

़ों की कमी सी रह गयी


सोचता था मैं कि वो कुछ बोलती क्यू नहीं

मोहब्बत क्या हैं 

वो कुछ सोचती क्यू नहीं

महसूस किया उसकी मुस्कान को 

तो मेरे हर्फ़ कम रह गये

पूरी बाज़ार के लफ़्ज़ आज बस मूक से रह गए


क्या लफ़्ज़ ज़रूरी हैं मोहब्बत बयान के लिए

अपनी शिद्दत और उसकी परवाह के लिए

यूँ तो लफ़्ज़ कम रह जाते थे उसकी इबादत में

मगर आज सिर्फ़ दिल से उसका नाम लिया

और मेरी दुआ क़बूल हो गयी।


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