हर युग का ज्ञान
हर युग का ज्ञान
धर्म का भी कुछ अलोकिक बखान है
अमृत देकर जो विष पिए
जगत में वही मनुष्य महान है
ईश्वरीय संभावनाओं का ज्ञात जिसे
कर्तव्यों का स्वयं ही प्रमाण है
मनुष्य वही बलवान है
सुख दुख जिसके लिए समान है
मगर जब अहंकार शिखर पर होता है
विवेक मनुष्य का खोता है
जब इच्छाएं ही धर्म बन जाती है
तब श्रृष्टि स्वयं रुद्र बन जाती है
फिर विनाश अहम का होता है
तब विस्तार धर्म का होता है
हर युग का यही एक ज्ञान है
अमृत देकर जो विष पिए
जगत में वही मनुष्य महान है।
