मेरा गाँव मेरा भारत
मेरा गाँव मेरा भारत
कष्ट से कराहता बिलखता गाँव आज है
तिल तिल सिकुड़ता क्यूँ आँचल की छाँव है
दुःख की घडी में बिरानिया ही मेरे साथ है
अपनो के आँसू क्यूँ खोज रहा घाव है
सुकून अब मिट रहा पीपल की छाँव में
बंदिशें जकड़ लिए घर घर के ही पाव में
बैशाख में पोखर भी मर रहे हैं प्यास के
बाग़ बगीचे अकेले हैं बंद है सब राह के
भाई ही भाई का दुश्मन बना आज है
रह रह सब बिगड़ता उसका साज है
छप्पर उठाने को कोई कन्धा नहीं मिला
घर को गिराने में लगा क्यों समाज है
प्रेम की धार कभी बहती जो गली गली
बिष बन कर गले उतरती क्यूँ आज है
बँटवारे में बाँट दिए अपने माँ बाप को
रोटी को तरसते ये पानी को मोहताज है
गाँव की सभ्यता प्रदूषित ,किया कौन है
शहर की ख्वाहिशो ने दिए सबको खाज है
संस्कार हमारा नहीं रहा कभी दूषित
पाठशाला कौन है जो सिखायी राग है
मन ही मन में मलाल कब तक रखोगे
कर लो पहल खुद ,बहुत छोटी सी बात है
अंकुरित करो भाई चारे के बीज को
वरना विलुप्त होगा सब गाँव से गाँव है।