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Chhabiram YADAV

Tragedy

3  

Chhabiram YADAV

Tragedy

होली की वेदना

होली की वेदना

2 mins
385




पल पल सिमटती क्यूँ होली की रीत है

होली की वेदना में आज होली के गीत है

फाल्गुन सिसकता है,हँसी अपनी खोता है

होलिका के हाथो आज प्रह्लाद प्राण खोता है

धर्म का अधर्म से अब होती नहीं जीत है

होली की वेदना में आज होली के गीत है


होलिका जलाऊं कहाँ होलिका है पूछती

प्रहलाद जीवित कैसे होलिका है सोचती

दो गज जमीं के लिए सब में मची चीख है

होली की वेदना में आज होली के गीत है


होलिका दहन में आज सारा सोया समाज है

मानव है जिन्दा पर मानवता का ही हास है

सब की जुबा पर दुपकी झूठे रंगो के पीस है

होली की वेदना में आज होली के गीत है


आज रंग फीका दिखा जब की रंगो में हाथ है

अलग अलग रंग है सब अलग थलग साज है

आँगन ,गली में रंगो से होती नहीं कीच है

होली की वेदना में आज होली के गीत है


हाथो में गुलाल लिए अब दिल में मलाल है

भाई अब भाई का ही आज बने हुए काल है

होली में गले मिल, रोती रिश्तो की प्रीत है

होली की वेदना में आज होली के गीत है


होली की हुड़दंग अब बीती कहानी क्यूँ

मिलते है गले लिए आँखों में फिर पानी क्यूँ

हम किसी से कम नहीं , यही सब की टीस है

होली की वेदना में आज होली के गीत है


ननद और भाभी की आज होली बिखर गई

देवर और भाभी की आज होली किधर गई

हँसी और ठिठौली में होती रिश्तो में खींझ है

होली की वेदना में आज होली के गीत है


सब हाथो का रंग सूख गया इंतजार में

रिश्तो में रंग फीके आज के क्यूँ बयार में

नोक झोक रिश्तो में आज बढ़ रही कुरीत है

होली की वेदना में आज होली के गीत है


खान पकवान सारे स्वाद हीन ही लग रहे

प्रेम में मिलावट अब रिश्तो में चल रहे

रंगो से लेता नही क्यूँ आज मानव भी सीख है

होली की वेदना में आज होली के गीत है





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