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Chhabiram YADAV

Abstract

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Chhabiram YADAV

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चीखती ख़ामोशी

चीखती ख़ामोशी

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तुम मौन हो

जब भी 

अपने होठों को

बंद कर 


चुप हो जाते हो

तब भी तुम्हारी खमोशी

तुम्हारी पसरी ,ठहरी सी

निगाहे 

बहुत तेज तेज बोलने 

लगती है 


जो होठ बोलने में 

कँपकँपाते थे

बड़ी निडरता से 

बेबाक होकर बोलती है

तुम बोलो मौन न रहो


तुम्हारी खमोशी से 

बेहतर तुम्हारे 

होठ है 

बोलते है जो भी

कानो तक ही 

पहुँच पाता है


लेकिन तुम्हारी ख़ामोशी की

चीत्कार 

मेरे दिल के उस पार तक

पहुँच जाती है


जहाँ मेरे होठ 

बोलने को 

मजबूर हो जाते हैं

पर तुम आज भी

मौन हो

कल भी थे

 

कब तक तुम्हारी 

ख़ामोशी

तुम्हारे अन्तर्मन की

वेदना को

दर्पण दिखाएगी


कब तक, कब तक

जब मेरी ख़ामोशी 

हमेशा के लिए 

मौन हो जायेगी।


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