समय की मार
समय की मार
वक्त दर वक्त सब कुछ बदल जाता है
उगता सूरज वक्त पर ढ़लता नजर आता है
मौसम बहारें जब भी आती है वक्त पर ही
वक्त आने पर दूर कदम हट जाता है
समय को देखा नही जहाँ में कोई भी
समय की मार से कहाँ कोई बच पाता है
इतराता जीवन, दौलत पर इठलाता है
समय के हाथो ही यहाँ राजा भी बिक जाता है
समय को लाख संजो कर इंसान रख ले अपने हिस्से में
समय आने पर खुद ही खिसक जाता है
मिलता नही है कुछ भी इंसान को
वक्त से पहले समय नहीं हो तो बस,
हाथ से भी निकल जाता है
इंसान कितना नासमझ है कि कीमत दौलत की करता है
समय आने पर वो खुद ही चला जाता है
देना है किसी को गर कुछ दो वक्त दे दो यारो
समय के आगे भला किसी का कहाँ चल पाता है।