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Megha Sharma

Tragedy

4  

Megha Sharma

Tragedy

सॅनिक का समर्पण

सॅनिक का समर्पण

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एक सॅनिक की आवाज़

मेरे दिल की गहराई से यूं निकली

एक संकल्प लेकर चला था मैं

आज़ादी की राह पर चला था मैं।


उस माँ के क़र्ज़ को अदा करना था

जिसकी गोद मे पला बढ़ा था मैं

हिमालय से कन्याकुमारी तक

एक रूपता से भरा था मैं।


हर नदी हर पहाड़ में

माँ की छवि बसा ले चला मैं

कभी भयंकर गर्मी से ज़ूझता था मैं

तो कभी बर्फ़ीले तूफ़ानो को झेलता

भूख प्यास का आभास ना रह जाता

देश की रक्षा का जब दायित्व हो जाता।


हर उस आँख से प्रतिशोध लेता

जो गद्दारी की भावना से उठती

खून की एक एक बूँद को माँ के चरणों में

समर्पित कर चला मैं।


उन दुश्मनो से बदला लेकर सफल हुआ मैं

लेकिन संकल्प अधूरा सा नज़र आया

क्योंकि अपने ही देश में गद्दारों ने जन्म ले लिया

उस माँ की निर्मल मन रूपी

नदियों में गंदगी को भर डाला।


पर्वतश्रृंखला को काट कर

अपने स्वार्थ का किला बना डाला

अपनी ही ज़मीन पर

अपनों को छलनी कर डाला

हर उस दिल से पूछता चला मैं।


क्या उस माँ की ममता का

यही सिला दिया तुमने

हे माँ भारती तेरे चरणों में

समर्पित होकर

तिरंगे मे लिपट चला मैं।


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