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Shalini Singh

Tragedy

5.0  

Shalini Singh

Tragedy

हिंदी दिवस

हिंदी दिवस

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सगी हूँ पर सौतेली बन सहती हूँ

अपने घर में ही सकुचाई सी रहती हूँ।


मैं हिंदी हूँ मातृभाषा कहते मुझे

मेरे बच्चे ही पर उपेक्षित करते मुझे।


मुझे न बचपन तुतलाता है अब 

चढ़ गयी जुबां पे तो होगा ग़ज़ब। 


डर यही मेरे बच्चों को सालता है

कैसे सोचेगी उनकी संतान अंग्रेज़ी में तब।


सिखते विदेशी भाषायें बड़े चाव से

दणित कर मुझे देते अनगिनत घाव से।


पराई भाषा न जानना, बात लज्जा की है

मुझे न पहचानने में पर शान छिपी है।


मेरे घर के कुछ कोनों को है मुझसे घृणा भी

तिरस्कार कर मेरा करते हैं विरोध भी।


मैं देश का गौरव हूँ मैं विकास की रेखा हूँ

यह कोरी बातें हैं इक दिवस को सजाती हैं।


इक दिन सम्मान दे अनादर करते वर्ष भर मेरा

माँ हूँ सब जानती हूँ पर फिर भी बहल जाती हूँ।


स्नेह आदर समेट कर तुम्हारा आँचल में

नज़रों से तुम्हारी फिर ओझल हो जाती हूँ। 


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