आज की नारी
आज की नारी
मैं लक्ष्मी हूँ अपने घर की,
मुझ को इसका गुमान नहीं !!
पर तुम राम हो अपने घर के,
उसका मुझ को अभिमान नहीं !!
सड़कों पे जब मैं निकला करती हूँ,
रावण की आँखों से डरती हूँ !!
इन लाचार आँखों से ,
सिर्फ राम, कृष्ण को ढूंढती हूँ !!
मैं एक नारी हूँ कोई अभिशाप नहीं
बिन मेरे ये संसार नहीं !!
रावण हो या कंस हो,
सबकी निगाहें छाती -
जाँघों पे जाती है!!
अब मैं कौन सा वस्त्र पहनूं ,
जिससे अपने तन को ढकूँ !!
घात लगाये रावण बैठा,
दुशाशन जब वस्त्र चीरता !!
जब जाँघों के बीच जोर जोर से
वार करते,
दर्द और पीड़ा से, मुँह से मेरे बस
आह निकलते !!
मैं एक नारी हूँ कोई अभिशाप नहीं
बिन मेरे ये संसार नहीं !!
जब वो मुझे निचोड़ खा जाते,
किसी रास्ते मुझे,अर्द्ध-नग्न
फेंक जाते !!
एक उम्मीद लगाये रहती हूँ,
अपनी पीड़ा को सहती हूँ !!
शायद मेरे राम आयेंगे,
उस रावण को सबक सिखाएंगे !!
पर इस घोर कलयुग में,
अब राम कहा से आएंगे,
रावणो की सेना से,
अब वो भी न लड़ पाएंगे !!
इस दुनिया में अब आने की,
दोबारा इच्छा नहीं,
भगवान मेरे प्राण तू ले ले ,
अब जीने की ख़्वाहिश नहीं !!
मैं एक नारी हूँ कोई अभिशाप नहीं
बिन मेरे ये संसार नहीं !!