Become a PUBLISHED AUTHOR at just 1999/- INR!! Limited Period Offer
Become a PUBLISHED AUTHOR at just 1999/- INR!! Limited Period Offer

आज की नारी

आज की नारी

2 mins
7.1K


मैं लक्ष्मी हूँ अपने घर की,

मुझको इसका गुमान नही

पर तुम राम हो अपने घर के,

उसका मुझको अभिमान नही !


सड़कों पे जब मैं निकला करती हूँ,

रावण की आंखों से डरती हूँ

इन लाचार आँखों से चारों ओर,

सिर्फ राम, कृष्ण को ढूँँढ़ती हूँ !


मैं एक नारी हूँ कोई अभिशाप नही

बिन मेरे ये संसार नही

रावण हो या कंस हो,

सबकी निगाहें छाती - जाँघों पे जाती हैं


अब मैं कौनसा वस्त्र पहनूंं,

जिससे अपने तन को ढकूं

घात लगायए रावण बैठा,

दुशासन जब वस्त्र चीरता !


जब जाँघों के बीच जोर जोर से वार करते,

दर्द और पीड़ा से, मुँह से मेरे बस आह निकलते !

मैं एक नारी हूँ कोई अभिशाप नही

बिन मेरे ये संसार नही !


जब वो मुझें निचोड़ खा जाते,

किसी रास्ते मुझे ,अर्द्ध-नग्न फेंक जाते

एक उम्मीद लगाए रहती हूँ,

अपनी पीड़ा को सहती हूँ !


शायद मेरे राम आयेंगे,

उस रावण को सबक सिखाएंगे !

पर इस घोर कलयुग में, अब राम कहाँँ से आएंगे,

रावणो की सेना से , अब वो भी न लड़ पाएंगे !


इस दुनिया मे अब आने की, दुबारा इच्छा नही,

भगवन मेरे प्राण तू ले ले , अब जीने की ख्वाहिश नही !

मैं एक नारी हूँ कोई अभिशाप नही

बिन मेरे ये संसार नही !




Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Drama