आज की नारी
आज की नारी
मैं लक्ष्मी हूँ अपने घर की,
मुझको इसका गुमान नही
पर तुम राम हो अपने घर के,
उसका मुझको अभिमान नही !
सड़कों पे जब मैं निकला करती हूँ,
रावण की आंखों से डरती हूँ
इन लाचार आँखों से चारों ओर,
सिर्फ राम, कृष्ण को ढूँँढ़ती हूँ !
मैं एक नारी हूँ कोई अभिशाप नही
बिन मेरे ये संसार नही
रावण हो या कंस हो,
सबकी निगाहें छाती - जाँघों पे जाती हैं
अब मैं कौनसा वस्त्र पहनूंं,
जिससे अपने तन को ढकूं
घात लगायए रावण बैठा,
दुशासन जब वस्त्र चीरता !
जब जाँघों के बीच जोर जोर से वार करते,
दर्द और पीड़ा से, मुँह से मेरे बस आह निकलते !
मैं एक नारी हूँ कोई अभिशाप नही
बिन मेरे ये संसार नही !
जब वो मुझें निचोड़ खा जाते,
किसी रास्ते मुझे ,अर्द्ध-नग्न फेंक जाते
एक उम्मीद लगाए रहती हूँ,
अपनी पीड़ा को सहती हूँ !
शायद मेरे राम आयेंगे,
उस रावण को सबक सिखाएंगे !
पर इस घोर कलयुग में, अब राम कहाँँ से आएंगे,
रावणो की सेना से , अब वो भी न लड़ पाएंगे !
इस दुनिया मे अब आने की, दुबारा इच्छा नही,
भगवन मेरे प्राण तू ले ले , अब जीने की ख्वाहिश नही !
मैं एक नारी हूँ कोई अभिशाप नही
बिन मेरे ये संसार नही !