मैं गीत नये कुछ गाता हूँ
मैं गीत नये कुछ गाता हूँ
मैं गीत नये कुछ गाता हूँ
मै गीत नए कुछ गाता हूँ
हैं शब्द नये, है भाव नया
कहने का है अन्दाज़ नया
है इन शब्दों का अर्थ वही
पर शब्दों का भावार्थ नया
कुछ भूली बिसरी बातों को
देखो फिर से दोहराता हूँ
मैं गीत नए कुछ गाता हूँ
रामायण में राम ही क्यों बोलो तो पूजे जाते हैं
आओ कुछ बात करें उनकी जो राम को राम बनाते हैं
लालच राज्य का यदि मन में, कैकयी के ना आया होता
भीषण भविष्य का भय मंथरा ने जो ना दिखलाया होता
वचन परायण राम बने, कैकयी को शीश झुकाता हूँ
मैं गीत नए कुछ गाता हूँ
वनवास मिला था प्रियवर को, सीता को संग में जाना था
भाई से दिल का नाता था, लक्ष्मण को साथ निभाना था
वो नई नवेली दुल्हन थी, मुख से पर कुछ भी कहा नहीं
लक्ष्मण चौदह वर्ष जगें, निद्रा अपनी आंखों में ली
वनवास से था मोह त्याग बड़ा, उर्मिला की बात बताता हूँ
मैं गीत नए कुछ गाता हूँ
बल से बड़ा बलि
था वो, लो माना आज छली था वो
रावण को कांख में रख पाया, कोई ना सामने टिक पाया
वानर सेना संग पाने को, प्रभु ने भी उसे छल से मारा
सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर मानो जैसे उससे बिना लडे हारा
फिर पुत्र दिया प्रभु सेवा में, बाली को समझ ना पाता हूँ
मैं गीत नए कुछ गाता हूँ
क्या खोज सिया की हो पाती, कर्म शबरी जटायु ना करते
सेना क्या लंका जा पाती, नल नील ना जो सेतु रचते
नाग पाश के लिए गरुड़, मूर्छा के लिए सजीवन थी
रावण मारे ना मरता था, काम आई सलाह विभीषण की
रण विजय राम ने किया मगर, हर रणि का ऋण बतलाता हूँ
मैं गीत नए कुछ गाता हूँ
है कहा किसी ने ठीक ही ये, एक हाथ से ताली नहीं बजती
मानव हो या भगवान् हो पर, बिन साथी विजय नहीं मिलती
एकता में ही शक्ति है, इतिहास भी ये बतलाता है
वसुधैव कुटुंबकम का नारा, भी बात यही सिखलाता है
सब साथ रहो, सब सुखी रहो बस ये ही कहता जाता हूँ
मैं गीत नए कुछ गाता हूँ