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Prasenjit Sarkar

Drama Romance Inspirational

4.5  

Prasenjit Sarkar

Drama Romance Inspirational

‘लता, आज चाय नहीं पिलाओगी?’

‘लता, आज चाय नहीं पिलाओगी?’

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मानो कल की ही हो बात उनसे हमारी हुई मुलाकात

उनकी हाथ की चाय के क्या कहने है,

लगा जैसे जन्मो का अटूट बंधन हो,

बस हमसे सम्हला ना गया और हम गलती कर बैठे कि उनसे शादी कर बैठे!

हम आपसे शादी कर बैठे.

आप ने हमेशा समझाया, रवि इस चक्कर में ना फँसो बहुत पछताओगे,

हमने बात पलट के उनसे पूछा , एकटक बस वही पाँच शब्द-

‘लता, आज चाय नहीं पिलाओगी?’

 

रवि और लता को जब हिमाद्रि और अभिलाषा हुए

तब हमने जिद रखी, हम एक को डाक्टर और एक इंजीनियर बनायेंगे

लता ने तब कहा हमसे, ‘गर कवि और लेखक बन गये तो क्या कम हो जायेगा आपका प्यार?

क्या नहीं होंगे इनके सपने साकार?’

आपने अपना समय दिया और साथ में हमारे हिस्से का भी,

समय नदी कि भान्ति बहता गया, लहर दर लहर समुंदर में हीरे-मोती, हीरे-मोती.

जब दो स

ुखद संसार बसे, एक कवि और एक लेखिका उभरे, तब जाकर लता से पूछ लिये-

‘लता, आज चाय नहीं पिलाओगी?’

 

जब साठ की सीमा लांघ लिये तब यौवन का ख्याल आया

कुछ मुरझाये गुलाब कि पंखुड़ियां गालिब कि किताब में दबे मिले,

आंखों के समंदर में डूबे रहे मेरे कुछ अरमान ऐसे निकले

कुछ धुँधलाये यादों में से उनकी तस्वीर बना लाये,

दस्तक देती है आज भी उनकी मुस्कान मेरे मन के द्वार

वही चेहरा याद आता है लता, मानो मिले थे जब हम दो पहली बार.

याद करता हूँ आज भी गुजरे हुए वह पैंतीस साल

जब तुमने कहा था, ‘रवि मुझे एक वचन दो बस आखिरी बार,

मिलोगे तुम मुझे वही मेरे घर के द्वार, मेरे चौखट पे तुम्हारे दस्तक का रहेगा इंतजार.

मुसकुराऊंगी उस बार, कम शर्माऊंगी, पर बेझिझक बेबाक तुम मुझसे पूछना एक बार-

लता, आज चाय नहीं पिलाओगी?’


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