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Phool Singh

Drama Tragedy Inspirational

4  

Phool Singh

Drama Tragedy Inspirational

An Old Woman

An Old Woman

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दूर दराज एक छोटे घर में, बूढ़ी अम्मा रहती थी

कोमल, अबला सफ़ेद केश संग, अधरों पर जो मुस्कान सजाये रहती थी

दूर दराज एक छोटे घर में, बूढ़ी अम्मा रहती थी।


सब कुछ कितना सही है जैसे, सबका व्यवहार से मन मोह लेती थी

अपना दुख-तकलीफ न कभी बताती, बस शांत चित से रहती थी

दूर दराज एक छोटे घर में, बूढ़ी अम्मा रहती थी।


मेरे अन्तर्मन में उत्सुकता जागी, अपने हृदय पट पर मैं कुछ तो टटोलती रहती थी

इस उम्र में कोई क्यों और कैसे, बूढ़ी अम्मा खुश रहती थी

दूर दराज एक छोटे घर में, बूढ़ी अम्मा रहती थी।


उसके घर न कोई जाता-आता, सदा प्रभु भजन में रहती थी 

न गिला न शिकवा किसी से, सभी को अपना कहती थी

दूर दराज एक छोटे घर में, बूढ़ी अम्मा रहती थी।


गले लगाकर पैर को छूकर, पास में जा मैं बैठी थी

उसके सुख-दुख का हाल पूछने, थोड़ा उसको समझना चाहती थी

दूर दराज एक छोटे घर में, बूढ़ी अम्मा रहती थी।


झर-झर आँसू गिरते उसके, हमदर्द, मुझे अपना समझ वो बैठी थी

नाती-पोते उसको ताने देते, न साथ अपनी औलाद भी देती थी

दूर दराज एक छोटे घर में, बूढ़ी अम्मा रहती थी।


बेज्जती होती जो साथ में रखते, जिन्हे लाड़-दुलार से इतना रखती थी 

दो वक्त का खाना भारी पड़ता, उसकी देखभाल भी न उनसे होती थी

दूर दराज एक छोटे घर में, बूढ़ी अम्मा रहती थी।


अपने पेशे में व्यस्त बहूँ-बेटियाँ, थोड़ा वक्त न उसको देती थी 

व्यक्त करें किसे अपने भावों को, जो घर में अकेली रहती थी

दूर दराज एक छोटे घर में, बूढ़ी अम्मा रहती थी।


बिखर गई मैं समाचार ये सुनकर, अम्मा, शव शैय्या पर लेटी थी

ढोंगी-स्वार्थी लोग अश्रु बहाते, उसकी होश न जिनको रहती थी

दूर दराज एक छोटे घर में, बूढ़ी अम्मा रहती थी।


करते को सब सलाम है करते, क्यों न बुढ़ापे को दुनियाँ सहती है   

बेरहम दुनियाँ स्वार्थी कितनी, उस दिन समझ मैं बैठी थी

दूर दराज एक छोटे घर में, बूढ़ी अम्मा रहती थी।


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