पापा और मैं...
पापा और मैं...
पापा और मैं...
अरे विजय बस भी खाली ही जा रहे हैं
क्योँ टैक्सी को ऐसे ही बुला रहे हैं
जो काम 5 रूपए में हो जाएगा
व्यर्थ ही 100 रूपए लगा रहे हैं
टैक्सी में आराम से बैठ के जायेंगे
पैसा है तो कहीं शरीर पर लगाएंगे
इतना कृपणता ठीक नहीं
थोड़ी हम अपनी कमाई लगाएंगे
बेटा बस है पूरी खाली इसीलिए था मैं बोला
पैसा है तुम्हारे पास माना पर व्यर्थ क्यों गवांना
बड़ी मेहनत से जमा हो पाए थे मेरे से
कमी ही पूरी कर पाए सदा बस यही रहा रोना
टैक्सी आयी कुछ देर में और हम चल दिये
सामने था स्टेशन सो जल्दी ही हम उतर गए
पैसा सही में 90 ही आया पर 10 का छुट्टा ना था
सो रूपए 100 का ही उसे थमा आए
ट्रेन में था 2 घंटे का विलंब
हम प्रतीक्षालय में बैठ गए
पापा थोड़ी देर ही बेठे
फिर स्टेशन का निरीक्षण करने लगे
थोड़ी देर बाद हम भी बाहर निकल आए
पापा के साथ अपने प्लेटफॉर्म पर जो आए
>एक दंपति थी व्याकुल सबसे मदद मांग रही
पापा ने देखा और कुछ परेशान हो गए
ऐसा नाटक हमने हमेशा है देखा
पैसा कमाने का बन गया है पैशा
पापा कुछ नहीं बोले रहे चुप चाप खड़े
शायद तुम हो गए बहुत बड़े
पर...
बेटा कुछ पैसा हमने भी थी कमाए
पैसा था कम पर दूसरा का दुःख कभी ना भाये
माना तुम्हारे पास इनके लिए नहीं है पैसे
पर किसी को मैं अब दुःख में छोड़ूं कैसे
कुछ देर में ट्रेन प्लेटफॉर्म पर लग गई
हम भी चल पड़े अपने बोगी की ओर
पापा रुके खरीदा एक डोसा का पैकेट
थमा उस विपन्न दंपति की ओर
दंपति ने रोते हुए पांव पर गिर प्रणाम किया
सुबह आए थे किसी ने सामान हमारा चुरा लिया
खाने को भी था ना शेष भाग्य ने बुरा हाल किया
आप बन कर आए परमात्मा अन्न का दान किया
ट्रेन के चलने का हॉर्न था बज चुका
भाग अपने अपने बर्थ पर हम जा बैठे
कहीं दूर 100 रूपए की टैक्सी दोड़ रही थी
भूखे पेट को कोई दो रोटी खिला बैठे।