आखिर क्यूँ ?
आखिर क्यूँ ?
दिल के अंदर कुछ टूट गया अपना सा कोई रूठ गया
लाख सम्हाला मैंने पर साथ किसी का छुट गया
वो साथी था वो हमदम था मेरे घावों पर मरहम था
मैं जहां गया वो वहाँ चला हमराही मेरा हरदम था
हाव भाव से ढीला था स्वभाव से थोड़ा शर्मिला था
आवाज़ में नरमी थी उसकी बदन से थोड़ा लचीला था
वो यार था मेरा प्यार नहीं था लोगों को एतबार नहीं
ना जाने क्यों ऐसी बातें लोगो को होती स्वीकार नहीं
तन से नर दिखने वाला, वो मन से पुरा नारी था
कुंठित समाज के नज़रों में तो वो पूर्ण व्यभिचारी था
ये गलती तो कुदरत की है आभा अलग काया अलग
तन से मन का है मेल नही जिस्म अलग और रूह अलग
खुद को नारी जानने वाला नारी पर ललचाये कैसे
मन से नर को चाहने वाला, नारी से नैन लडाये कैसे
पर यारी
है सबसे अलग जिसमे लिंग का भेद नहीं
वो नर है या नारी है मन से किसी बात का खेद नहीं
ना जाने कैसा शोर हुआ बस यहीं नहीं हर ओर हुआ
कमजोर सी कुछ अफवाहों पर वो घबराकर भाव विभोर हुआ
अपनी तो यारी पक्की थी लोगों की नज़रें शक्की थी
हम थोड़े भी तैयार ना थे उनकी तैयारी पक्की थी
ढूंढा उसको पर दिखा नहीं घर गया मगर वो मिला नहीं
संदेश भेजे कई मगर जवाब कोई भी मिला नहीं
मैंने सोचा वो बदल गया लेकिन वो थोड़ा बादल गया
लोगों का भरम मिटाने को लोगों के संग वो उलझ गया
सबने हमको मजबूर किया हनें एक दूजे से दूर किया
कोमल अपने रिश्ते को तानो से चकना चुर किया
हम एक दूसरे को भुला बैठे अपनी दुनिया जला बैठे
कुछ जाहिलों के कारण हम अपनी यारी गवाँ बैठे।