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Lokeshwari Kashyap

Drama Classics Inspirational

4  

Lokeshwari Kashyap

Drama Classics Inspirational

व्यथित हूँ

व्यथित हूँ

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देख कर मैं व्यथित हूं.......

पीड़ा में तड़पते हुए अपनों को,

टूट कर बिखरते हुए सारे सपनों को,


देख कर मैं व्यथित हूं...........

निस्तब्ध,स्तंभित की वेदनाओ को,

साथ ही लोगों की असंवेदनाओं को, देखकर मैं व्यथित हूं.............

पर पीड़ा में अवसर तक रहे लोगों को,

सांसों की कालाबाजारी करते सौदेबाजों को,


देख कर मैं व्यथित हूं................

उन्होंने देखा था लाशों पर चढ़कर आजादी आई थी,

 हम देख रहे आज लाशों पर गरमाई तुच्छ राजनीति को,


 देख कर मैं व्यथित हूं.................

अब तो जिंदगी और मौत पर भी आरक्षण का दांव चल रहा,

 हमारी ही आस्तीन में जाने कब से फरेबी सांप पल रहा,


 देख कर मैं व्यथित हूं...............

कोई तरस रहा हवा को तो कोई तरस रहा दवा को,

 पर क्या फर्क पड़े देश के लापरवाहो को,गद्दारों को,


देख कर मैं व्यथित हूं...............

लोग पढ़ लिखकर परंपराओं संस्कारों से दूर हो गए,

 सर्वे भवंतु सुखिनः सर्वे भद्राणि पश्यंतु के भाव अब लुप्त हो गए,


 देख कर मैं व्यथित हूं..............

कहां गई वो रिश्तो की गर्माहट वह भावनाएं, वह आत्मीयता,

इस दुख में मौका परस्ती की दिखाई पड़ रही कैसी यह विडंबना,


देखकर मैं व्यथित हूं..................

इधर मर रहे सब बीमारी से,उधर हर तरफ कत्लेआम हैं.

हर जगह घोटालेबाजी इधर भी शमशान उधर भी श्मशान हैं.


देखकर मैं व्यथित हूं............

खून हो रहा मानवता का, शांति से मन वीरान हैं.

 आज फिर भी चुप क्यों हिंदुस्तान है

ं देख कर मैं व्यथित हूँ..................

असहिष्णुता की आग में आज जल रहा पूरा बंगाल है.

 तथाकथित फिल्मीस्तानी देशभक्त आज क्यों बेजुबान हैं.

 

देख कर मैं व्यथितहूं.....................

इस वायरस ने आज पुनः सबको कर दिया बेहाल है.

 खींच लिया इसने सारे रंग बदलते गिरगिटों की खाल है.


 देख कर मैं व्यथित हूं.................

हर तरफ त्रासदी,हर तरफ मच रहा हाहाकार है.

 हमसे रूठ चुके क्यों अब हमारे संस्कार हैं.


देख कर मैं व्यथित हूं................

अब कहां गई वह वसुधैव कुटुंबकम की भावना,

 यहां अब हर किसी को सत्ता धन की है कामना.


देख कर मैं व्यथित हूं.................

राजनीति की चिट्ठी लिखना छोड़ कुछ तो अच्छा काम करो.

 अब तो षड्यंत्र बंद करो, तुम जैसों को धिक्कार है.


देखकर मैं व्यथित हूं..................

हर तरफ भ्रम,हर तरफ लालच की बहार है.

 जाने कितने अपने चले गए, कितनों को इंतजार है.


 देख कर मैं व्यथित हूं...................

आज इंसान कितना बेबस कितना लाचार है.

 बद से बदतर होते जा रहे,किसी के काबू में अब नहीं हालात है.


 देख कर मैं व्यथित हूं.............

बाहर खतरा है मत निकल, पर तू तो पतंगा दीवाना है.

 क्यों नहीं देख रहा आज हर गांव हर शहर हो रहा वीराना है.


देख कर मैं व्यथित हूं....................

घर पर रहो, सुरक्षित रहो, बात हमारी मान लो.

जो कुछ जितना बचा है अब तो उसको प्यार से संभाल लो.

देख कर मैं व्यथित हूं....................


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