छाँव देना छोड़ेंगे नहीं
छाँव देना छोड़ेंगे नहीं
वक़्त को चलते नहीं लांघते हमने देखी है
आज के माँ बापों की
अजीब कहानी हमने देखी है
हमें बचपन में किसीने समझा नहीं
आज हमारी कोई सुनता नहीं।
गरम कपडे भर पेट खाना पूरी चादर
बचपन में कभी मिली नहीं
पिताजी की साईकिल की एक सवारी
और जन्नत के सैर में कोई फर्क था नहीं।
वजह बेवजह मार न खाई हो
एक भी रोज गुजरा नहीं
बाकी कसर स्कूल में निकलती
मास्टरजी की छड़ी ने बक्शी नहीं।
इतने जल्लादों के बीच
अपनी शरारत कभी छोड़े नहीं
पतंग गोली लागोरी मार पीट
हम किसी से कम नहीं।
वक़्त ने कब करवट ली
पता चला ही नहीं
अपने जड़ों से नाता टूट गया
कानों कान पता नहीं।
कितनी बातें कितने तजुर्बे
किसीको हमसे कुछ रखा नहीं
किसे सुनाएं आज ये बात
मोबाइल से किसीको फुर्सत नहीं।
पैसा रुतबा खूब कमाए
संस्कार बच्चों पे किया नहीं
पारिओं की कहानी कौन सुनाये
नाना नानी संभाले नहीं।
बचपन में हमें जो मिला नहीं
उसका अफ़सोस कभी किया नहीं
बेघर हो गए मेहनत करते करते
अब सागर का किनारा दिखता नहीं।
बच्चोंको सवारें हैं लाड प्यार से
काली बात भी बताएँगे - झिझकेंगे नहीं
गिद्दों का इत्र का गंध आ जाये
क़यामत तक पीछा छोड़ेंगे नहीं।
जड़ें तो कट चुके हैं - चलो ठीक है
बरगत की तरह जियेंगे यहीं
जैसी तैसे कट गई अपनी
छाँव देना फिर भी छोड़ेंगे नहीं।