STORYMIRROR

umesh kulkarni

Inspirational

4  

umesh kulkarni

Inspirational

धरती, माँ क्यों कहलाती है ….

धरती, माँ क्यों कहलाती है ….

1 min
253

पवन के चाल में हज़ार नखरे हैं

इधर की बातें उधर पहुंचाती है

कभी परवाज़ को बुलंदी पे ले जाती है

तो कभी तूफ़ान बनकर कहर बरपाती है


बारिश एक चालाक खिलाडी है

हर बरस वही बारिश घुमाती है

बरसने का मौसम आगे पीछे करके 

धरती का सीना फाड़के मजे लेती है


चाँद के चहरे पे इतने दाग

फिरभी मोहब्बत का नगीना केहलाता है

इधर दाग का एक छींटा गिरा की नहीं

धोबन भी पैरों तले कुचलने लगती हैं


सूरज की तकदीर अच्छी है

जो धरती से बेशुमार प्यार पाता है

वार्ना विशाल कयनाथ में

हज़ारों सूरज भटकते ही तो रहते हैं


धरती, अब समझा, माँ क्यों केहलाती है

अनगिनत बीजों का गर्भ धारण करती है

जड़ें तो सीना छलनी करती हैं

फिर भी फूल और फल देते ही रेहती है।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Inspirational