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umesh kulkarni

Abstract

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umesh kulkarni

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मुझे बदलना चाहा....

मुझे बदलना चाहा....

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मुझे जो भी मिला

मुझे बदलना चाहा।

अपने रंग में मुझे

ढालना चाहा।

मैं कोई पानी का बहाव हूँ

जो मुड़ जाऊं?

कोई गिरगिट का रंग हूँ

जो बदल जाऊं?

मैं तो रब ने बनाई

पत्थर की लकीर हूँ।

उसीकी बनाई हुई,

एक मजबूत तकदीर हूँ।

तू भी वही, मैं भी वही

चलो एक दुसरे को जाने हम

क्यों न रब की बात माने हम।


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