सूरमाओं की रुखसत
सूरमाओं की रुखसत
नए जख्मों पे खुश होता रहा
उसके नक्काशी पर खुश होता रहा
जख्म तो पुराने जैसे ही थे मगर
लहू का हर कतरा नया सा लगता रहा
इंसानी हुकूक की हिफाज़त
दरिंदो को सौंप कर चले गए
फसलों की हिफाज़त कौन करे
मुहाफ़िज़ हिज़रत पर चले गए
हतियारों को खिलौना बना गए
खिलौनों का हथियार बना गए
दम तोड़ी हुई सुकून से
खौफ की वजह पूछते रह गए
औरों के घर को आग लगे तो लगे
मेरे यहाँ चूल्हा बुझना नहीं चाहिए
मेरे हथियारों से तबाही मचे न मचे
धन की बरसात रुकनी नहीं चाहिए
सूरमा सभी ओझल हो गए
कुछ मिटटी और कुछ हवा हो गए
खुदा को कैद में रखने वाले भी
चार कन्धों पे ही रुख़सत हो गए.